Thursday, 18 August 2011
राज्यसभा में जस्टिस सेन पर महाभियोग प्रस्ताव पास....
देश में महाभियोग की कार्यवाही का पहला मामला सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामास्वामी का था. उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था लेकिन यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया था, क्योंकि सत्ताधारी कांग्रेस ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया था. सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने उस समय लोकसभा में न्यायमूर्ति रामास्वामी का बचाव किया था.
लेकिन इस बार राज्यसभा ने एक नया इतिहास रचते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ धन की हेराफेरी और कदाचार के आरोप में महाभियोग प्रस्ताव आवश्यक दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दिया. न्यायमूर्ति सेन पर 1990 के दशक में लगभग 24 लाख रुपये के गबन का आरोप है. उस समय वे वकील थे और कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उन्हें रिसीवर नियुक्त किया था. माकपा सदस्य सीताराम येचुरी द्वारा पेश किये गये महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में 189 और विरोध में 17 मत पड़े. उच्च सदन में बहुजन समाज पार्टी के सदस्यों ने इस प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया. उच्च सदन में न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ दो दिन तक चली महाभियोग कार्यवाही के दौरान उन्हें अपना पक्ष रखने के लिये कल राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी ने करीब दो घंटे का समय दिया था. न्यायमूर्ति सेन ने अपने खिलाफ सारे आरोपों को न न केवल खारिज किया, बल्कि भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ भी टीका-टिप्पणी की.
उच्च न्यायपालिका के किसी भी न्यायाधीश को हटाने के लिये महाभियोग प्रस्ताव का संसद के समान सत्र में दोनों सदनों में पारित होना जरूरी है. अगर इसी सत्र में लोकसभा भी दो तिहाई बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित कर देती है तो न्यायमूर्ति सेन को पद से हटाने का रास्ता साफ हो जायेगा. राज्यसभा द्वारा न्यायमूर्ति सेन को हटाये जाने संबंधी प्रस्ताव पारित कर देने के बाद अब यह प्रस्ताव अगले सप्ताह लोकसभा में पेश हो सकता है. निचले सदन द्वारा इस प्रस्ताव पर 24 और 25 अगस्त को चर्चा होने की संभावना है.
राज्यसभा में न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को 58 सदस्यों ने अनुमोदित किया था. इसके बाद सभापति ने इसे स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी, न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल और प्रख्यात विधिवेत्ता फाली एस नरीमन की सदस्यता वाली जांच समिति का गठन किया. समिति ने अपनी रिपोर्ट में न्यायमूर्ति सेन को धन की हेराफेरी और कदाचार का दोषी पाया. उच्च सदन में हुई चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि न्यायमूर्ति सेन ने उच्च सदन को ‘गुमराह’ किया है. उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति सेन ने जानबूझकर जांच प्रक्रिया में सहयोग नहीं दिया.
महाभियोग प्रस्ताव तभी पारित होगा, जब कम से कम 50 प्रतिशत सांसद उपस्थित होंगे और उसमें से दो-तिहाई प्रस्ताव के पक्ष में वोट देंगे. यदि राज्यसभा में प्रस्ताव पारित हो गया, तो यह एक सप्ताह के भीतर लोकसभा में जाएगा.
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